विकासवादी महर्षि दयानन्द
महर्षि दयानन्द विकासवादी विचारधारा वाले संन्यासी थे। मोक्षप्राप्ति की अपेक्षा उन्हें मानवसुधार अधिक प्रिय था। सर्वांगीण उन्नति की दृष्टि से उन्होंने एक आन्दोलन छेड़ा और उस पवित्र यज्ञ की आहुति में अपना सर्वस्व अर्पित किया। उनका मानना था कि मनुष्य को पहले ईश्वर का, पश्चात धर्म का ज्ञान होना चाहिए। ईश्वर और धर्म को जाने बिना मनुष्य अपने कर्तव्य को ठीक से नहीं समझ पायेगा। मानव जीवन की सार्थकता ईश्वरीय ज्ञान से है। तत्कालीन अन्धविश्वास महर्षि दयानन्द को बहुत अखरता था। इसी कारण उस समय फैली कुरीतियों व रूढियों को जड़ से उखाड़ने का भरसक प्रयत्न किया। उन्होंने अपने को एक आदर्श समाज सुधारक एवं मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत किया। परन्तु उनमें महत्वाकांक्षा का कहीं भी स्पर्श प्रतीत नहीं होता। उनका समग्र जीवन वैदिक सिद्धांतों के परिपालन का एक नमूना है।
सत्यार्थप्रकाश की भूमिका में महर्षि दयानन्द स्पष्ट लिखते हैं कि जैसा मैं किसी भी मत पन्थ को प्रथम ही बुरी दृष्टि से न देखकर उनमें गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग तथा मनुष्य जाति की उन्नति के लिये प्रयत्न करता हूँ, वैसा सबको करना योग्य है।
In the preface of Satyarth Prakash, Maharishi Dayanand clearly writes that just as I do not look at any religion with a bad eye from the beginning, but accept its good qualities and abandon its bad qualities and work for the progress of mankind, everyone should do the same.
Evolutionist Maharishi Dayanand | All India Arya Samaj 8120018052 | Hindu Marriage Helpline | Arya Samaj Legal Marriage Service | Arya Samaj Marriage Registration | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Inter Caste Marriage Consultant | Arya Samaj Marriage Procedure | Arya Samaj Vivah Poojan Vidhi | Arya Samaj Marriage Pandits | Arya Samaj Inter Caste Marriage | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Vivah Mandap | Inter Caste Marriage Helpline | Marriage Service in Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Intercaste Marriage | Arya Samaj Vivah Pooja | Inter Caste Marriage helpline Conductor | Official Web Portal of Arya Samaj | Arya Samaj Intercaste Matrimony | Marriage Service in Arya Samaj
विकासवादी महर्षि दयानन्द महर्षि दयानन्द विकासवादी विचारधारा वाले संन्यासी थे। मोक्षप्राप्ति की अपेक्षा उन्हें मानवसुधार अधिक प्रिय था। सर्वांगीण उन्नति की दृष्टि से उन्होंने एक आन्दोलन छेड़ा और उस पवित्र यज्ञ की आहुति में अपना सर्वस्व अर्पित किया। उनका मानना था कि मनुष्य को पहले ईश्वर का, पश्चात धर्म का ज्ञान होना चाहिए।...