दिव्य मानव मिशन ट्रस्ट मानव मात्र की सेवा के उद्देश्य से निर्मित एक धार्मिक-सामाजिक-शैक्षणिक-पारमार्थिक न्यास है। इसकी स्थापना भारतीय संस्कृति के प्रखर चिन्तक एवं वेदमर्मज्ञ आचार्यश्री डॉ. संजयदेव जी ने की है। दिव्य मानव मिशन ट्रस्ट के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
दिव्य मानव मिशन ट्रस्ट के केन्द्रीय कार्यालय, दिव्ययुग सदन, 90 बैंक कालोनी, अन्नपूर्णा मार्ग, इन्दौर (म.प्र.) के माध्यम से वर्तमान में निम्न गतिविधियॉं संचालित की जा रही हैं
दिव्ययुग मासिक पत्र : अप्रैल 2002 से दिव्य मानव मिशन के मुख-पत्र के रूप में धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, नैतिक, राष्ट्रीय चेतना के मासिक पत्र दिव्ययुग का नियमित प्रकाशन किया जा रहा है। अब यह दिव्ययुग निर्माण न्यास का भी मुख पत्र है।
सत्य सनातन वैदिक धर्म एवं राष्ट्रीय चेतना के निर्भीक संवाहक के रूप में देश के कोने-कोने में दिव्ययुग ने अपनी विशेष पहचान स्थापित की है। निर्भीक पत्रकारिता के क्षेत्र में दिव्ययुग ने एक आदर्श स्थापित किया है।
दिव्ययुग पत्रिका ही नहीं, एक अभियान भी है। यह अभियान है भारत राष्ट्र के जागरण का । यह अभियान है सामाजिक समता भाव के स्फुरण का । यह अभियान है भारतीय संस्कृति के तर्कसंगत पृष्ठपोषण का । यह अभियान है सत्य सनातन वैदिक भारतीय संस्कृति के जागरण का । यह अभियान है वैदिक(हिन्दू) धर्म के विश्व-बन्धुत्वमय स्वरूप को दर्शाने का।
साप्ताहिक वेद-स्वाध्याय : केन्द्रीय कार्यालय स्थित दिव्य सत्संग भवन में प्रति रविवार प्रातः 8.30 से 10.30 बजे तक वेद-स्वाध्याय का नि:शुल्क कार्यक्रम होता है । इस कार्यक्रम में सर्वप्रथम वैदिक यज्ञ, तत्पश्चात् वेद मंत्रों की आधुनिक संदर्भ में जनसाधारण की सरल भाषा में व्याख्या की जाती है।
दिव्य योग संस्थान : इस संस्थान के अन्तर्गत देश भर में समय-समय पर योग शिविरों का संचालन किया जाता है तथा सभी प्रकार के सामान्य और असाध्य रोगों की सफल चिकित्सा की जाती है। इन्दौर में घर पर जाकर योग सिखाने हेतु योग शिक्षक की व्यवस्था हैं।
दिव्य संस्कार केन्द्र : इस केन्द्र के माध्यम से परिवारों में सभी प्रकार के यज्ञ, संस्कार एवं कर्मकाण्डों की व्यवस्था की जाती है।
पारिवारिक परामर्श केन्द्र : पारिवारिक झगड़ों का निवारण सौहार्दपूर्ण वातावरण में किया जाता है । अनेक टूटते-बिखरते परिवारों को बचाया गया है। इस केन्द्र के अन्तर्गत दिव्ययुग विवाह सेवा का संचालन भी किया जाता है, जिसमें सभी हिन्दू जातियों के परिवारों को वैवाहिक रिश्तों का सुझाव दिया जाता है।
युवा चेतना केन्द्र : युवकों को अपने चरित्र एवं केरियर निर्माण के प्रति सजग किया जाता है । उनमें राष्ट्रीय भावना जागृत की जाती है तथा दुर्व्यसनों से मुक्त रहने की प्रेरणा की जाती है।
वैदिक संदर्भ पुस्तकालय : वेद तथा संस्कृत के एम.ए., एम.फिल्., पीएचडी के विद्यार्थियों के लिये यह इन्दौर शहर में एक अनुपम संदर्भ पुस्तकालय है। अनेकों शोध छात्र इससे लाभ उठा रहे हैं। आचार्यश्री डॉ. संजयदेव का शोध मार्गदर्शन भी शोधार्थियों को प्राप्त होता है।
दिव्य मानव मिशन ट्रस्ट की निकट भविष्य की योजनाएं
दिव्य विद्यालय : दिव्य मानव मिशन ट्रस्ट की ओर से देश भर में दिव्य विद्यालयों की स्थापना की जाएगी। सर्वप्रथम ऐसे दो विद्यालय स्थापित किए जाएंगे। इनमें से एक मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र (इन्दौर-उज्जैन के आसपास) में तथा एक हरियाणा के दक्षिणी क्षेत्र (भिवानी-महेन्द्रगढ के आसपास) में । इस कार्य हेतु दोनों स्थानों पर कम से कम पचास-पचास एकड़ भूमि की आवश्यकता है।
इन प्रस्तावित विद्यालयों में शिक्षा पद्धति पूर्णतया आधुनिक होगी तथा संस्कार पूर्णतया प्राचीन वैदिक प्रणाली पर आधारित होंगे। ये विद्यालय आवासीय होंगे।
गौशालाओं की स्थापना : देशभर में गौशालाओं की स्थापना की जाएगी। न्यास के संस्थापक आचार्यश्री डॉ. संजयदेव का स्वप्न है कि देश की एक भी गाय पोलीथीन खाकर न मरे तथा कसाई खानों में जाकर न कटे। सर्वप्रथम प्रस्तावित दो विद्यालयों के साथ ही गौशालाओं की स्थापना की जाएगी। मिशन के विद्यालयों के छात्रों. अध्यापकों एवं कर्मचारियों के दूध-घी की पूर्ति गौशालाओं के माध्यम से ही की जाएगी।
गौशालाओं में अपाहित तथा लूली-लंगड़ी गायों की अलग से अच्छी व्यवस्था रहेगी।
उदारमना दानी महानुभावों से निवेदन है कि वे शिक्षा एवं गौरक्षा के इस पुनीत यज्ञ हेतु मुक्त हस्त से दान देकर सहयोग करें। अपनी दान राशि "दिव्य मानव मिशन ट्रस्ट" के नाम से देय डिमांड ड्राफ्ट द्वारा अथवा मनीआर्डर द्वारा कार्यालय के पते पर प्रेषित करें ।
दिव्य मानव मिशन ट्रस्ट
90, बैंक कालोनी, अन्नपूर्णा रोड़, इन्दौर (म.प्र.)
दूरभाष क्रमांक : 0731-2489383, 9302101186
E-Mail : This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.
विकासवादी महर्षि दयानन्द महर्षि दयानन्द विकासवादी विचारधारा वाले संन्यासी थे। मोक्षप्राप्ति की अपेक्षा उन्हें मानवसुधार अधिक प्रिय था। सर्वांगीण उन्नति की दृष्टि से उन्होंने एक आन्दोलन छेड़ा और उस पवित्र यज्ञ की आहुति में अपना सर्वस्व अर्पित किया। उनका मानना था कि मनुष्य को पहले ईश्वर का, पश्चात धर्म का ज्ञान होना चाहिए।...