आज के सांस्कृतिक संक्रमण के दौर से गुजर रहे काल में भारतीय संस्कृति पर चर्चा आवश्यक हो जाती है। मूल्य संकट से गुजर रहे इन पलों में भारतीय संस्कृति से विशेष आशाएँ हैं; क्योंकि मानवीय जीवन, अस्तित्व एवं सृष्टि का जितना गहरा एवं समग्र चिंतन इसमें मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। आज के व्यक्ति, परिवार, समाज एवं विश्व की समस्याओं के समाधान सूत्र इसमें निहित हैं। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे विभिन्न नामों से जाना जाता रहा है। वेदों में उसका आदि उद्भव हुआ, अतः इसे वैदिक संस्कृति कहा गया। मानवीय प्रकृति एवं सृष्टि के मर्मज्ञ ऋषियों द्वारा इसका सूत्रपात हुआ, अतः इसे ऋषि संस्कृति कहा गया।
In today's era of cultural transition, discussion on Indian culture becomes necessary. There are special hopes from Indian culture in these moments of value crisis; Because the deep and holistic contemplation of human life, existence and creation is found in it, it is rare elsewhere. The solutions to the problems of today's individual, family, society and the world are contained in it. Due to these characteristics, it has been known by different names. It originated in the Vedas, hence it is called Vedic culture. It was initiated by the sages who were penetrating of human nature and creation, hence it was called Rishi culture.
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उवट, महीधर और सायणाचार्य आदि भाष्यकारों का विचार था कि वेद में वर्णित अग्नि, इन्द्र, वरुण, मित्र आदि कल्पित स्वर्ग में रहने वाले देवता हैं। ये देवता पृथ्वी पर दिखाई देने वाले अग्नि, वायु और जलादि पदार्थों के और आकाश में दिखाई देने वाले सूर्य, चन्द्रमा और उषा आदि के अधिष्ठात्री देवता माने जाते हैं। इस प्रकार से...